- स्वप्ना सिन्हा
युवा पीढ़ी - ऊर्जा से भरपूर ऐसी पीढ़ी , जो चाहे तो दुनिया बदल दे। पर उसी ऊर्जा को सही दिशा नहीं मिले तो वह हिंसा और अपराध की ओर मुड़ जाती है। युवा पीढ़ी के सामने होती है - सुनहरे भविष्य के सपने , एक शानदार कैरियर की इच्छा और सब कुछ पाने की चाहत। लेकिन ये सब उन्हें तुरंत और फटाफट चाहिए - चाहे इसके लिए कोई भी कीमत चुकानी पड़े। ऐसे ही सभ्य और शिक्षित दिखते युवा के चेहरे के पीछे छुपा एक भयानक चेहरा दिख जाता है , जो आक्रोशित , हिंसक , आक्रामक और अंतत: अपराधी होता है।
मनोविश्लेषण --- हिंसक होने और अपराध की दुनिया में कदम रखनेवाले युवाओं का मनोविश्लेषण करते हुए क्लिनिकल साइकोलोजिस्ट - डा . बिंदा सिंह कहती हैं ,"आज लोगों की लाइफ स्टाइल तेजी से बदल रही है। बदलते परिवेश की चमक - दमक से सबसे ज्यादा प्रभावित युवा हो रहे हैं। उन्हें यही चकाचौंध वाली लुभाती जिंदगी चाहिए - वो भी फटाफट ! जब उनकी " हाई डिमांड " पूरी नहीं होती और सब चीजें नहीं मिलाती तो वे आक्रामक हो उठते हैं। ऐसे में वे हिंसक हो जाते हैं और सारा आक्रोश माता - पिता पर या अन्य लोगों पर उतारते हैं। वे निराश और असफल होने के साथ ही डिप्रेशन में चले जाते हैं। ऐसे युवा ही आक्रामक और हिंसक हो कर अपराध की अंधी गलियों में भटकने लगते हैं।"
असीमित आकांक्षाएं --- युवा पीढ़ी को चकाचौंध से भरी दुनिया बहुत ज्यादा आकर्षित करती है, जो उनमें असीमित आकांक्षाएं जगाती हैं। वे सारी सुख - सुविधाओं को पा कर एशो आराम की जिंदगी गुजरना चाहते हैं। असीमित आकांक्षाएं उन्हें हिंसक बनाती है , अपराध की दुनिया की ओर धकेल देती है। सब कुछ तुरंत पाने की चाहत में वे कोई भी रास्ता अपनाने से नहीं हिचकते। समाचार के पन्ने ऐसे युवा अपराध की घटनाओं से भरे पड़े हैं जो पैसे के लिए अपनों का या दोस्तों का अपहरण करते , हत्या करते , डाका डालते , ड्रग बेचते या किसी भी अपराध को अंजाम देने से नहीं हिचकते।
पियर प्रेशर --- बच्चों और युवाओं की एक अलग ही दुनिया होती है, जहाँ वे अपने दोस्तों से परिचालित होते हैं और उनकी देखा - देखी अपनी डिमांड रखते हैं। ब्रांडेड कपड़े से लेकर बाइक - कार , सबकुछ दोस्तों के बराबर या उससे भी अच्छा चाहिए। ऐसे पियर प्रेशर में उनकी डिमांड बढ़ती हैं , जिसके न मिलने पर वे आक्रोशित और हिंसक हो उठते हैं।
हिंसात्मक कंप्यूटर गेम --- कंप्यूटर गेम युवा और बच्चों का पसंदीदा खेल बन चुका है , विशेष कर हिंसात्मक गेम उन्हें बेहद भाते हैं। जैसे - नीड फॉर स्पीड (कार रेस ); काउंटर स्ट्राइक या कॉल ऑफ़ ड्यूटी (मार धाड़ ) -- जैसे गेम उन्हें बहुत पसंद आते हैं। ऐसे हिंसात्मक खेलों का प्रभाव उनके कोमल मन पर पड़ता है और अनजाने में ही धीरे - धीरे वे हिंसक हो जाते हैं।
वोर्किंग पैरेंट्स --- आर्थिक कारणों से या अधिक सुविधासंपन्न जीवन जीने के लिए पैरेंट्स जॉब में इस कदर व्यस्त हो जाते हैं कि उनके पास अपने बच्चे के लिए ही समय नहीं होता। बच्चे अकेले पड़ जाते हैं और कई बार गलत संगत में पड़ जाते हैं। तब गलत काम करते हुए हिंसात्मक रास्ता अपना लेते हैं।
संयुक्त परिवार का विघटन --- बदलते सामाजिक परिवेश में संयुक्त परिवार टूट रहे हैं और एकल परिवार के चलन का जोर पकड़ रहा है। संयुक्त परिवार में बड़े - बुजुर्गों के सानिध्य में बच्चों को अच्छे संस्कार तो मिलते ही हैं, पारिवारिक एवं नैतिक मूल्यों को जानने - समझने से उनका स्वस्थ मानसिक विकास होता है , जो एकल परिवार में पूर्णतः संभव नहीं हो पाता है।
पैरेंट्स में प्यार का दिखावा --- कई बार पैरेंट्स प्यार का दिखावा करते हुए बच्चों को बहुत ज्यादा छुट दे देते हैं , जिसका नाजायज फायदा उठाते हुए वे गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं।
नैतिक शिक्षा और मूल्यों में ह्रास --- ग्लोबल होती दुनिया में बहुत ज्यादा खुलापन आ गया है। विशेष कर पश्चिमी सभ्यता ने समाज को बहुत अधिक प्रभावित किया है। युवा पीढ़ी ने पश्चिमी सभ्यता का अनुकरण सबसे ज्यादा किया है, जिससे उनमें नैतिक मूल्यों का ह्रास हुआ है। फिर शिक्षा पद्धति के बदलते पैटर्न के कारण भी नैतिक शिक्षा में कमी आयी है। बदलते सामाजिक परिवेश का प्रभाव भी इन सब के लिए जिम्मेदार है।
इसी लाइफ में. फिर मिलेंगे।