- स्वप्ना सिन्हा
माँ
मेरी माँ !
इस धरा पर
लेने दो जन्म
मुझे ,
मुझे भी दो अधिकार -
इस सुन्दर संसार को देखने का।
ये
सुन्दर फूल ,
पेड़ - पौधे ,
जीव - जंतु
सब
हैं कितने सुन्दर।
देखूँ मैं भी -
नीले आसमान को ,
सूर्य के प्रकाश और
चाँदनी रात को।
करूँ महसूस
हवा और सुगंध को ,
इनसे न करो वंचित मुझे।
मुझे भी पाने दो
तुम्हारा प्यार - दुलार ,
मुझ पर हो
आँचल तुम्हारे ममता का।
माँ ,
पता है मुझे भी
पिता का स्पष्ट आदेश
और
तुम्हारी विकट स्थिति ।
पर ,
माँ
मुझे
अपने कोख में ही
न मारो ,
एक बार ही सही ,
कुछ पल के लिए ही ,
देख तो लूँ -
इस अदभूत संसार को ,
जिसे देख रही हो तुम
अबतक।
आखिर , मैं तो हूँ -
तुम्हारा ही अंश ,
तुम्हारी ही
बेटी !
इसी लाइफ में , फिर मिलेंगे।
Beautifully written.
ReplyDeleteThanks for visiting my blog and posting your comment.
DeleteMam
ReplyDeleteGreat poem this should be published in standard magazine,
regards
Pushkar kr sinha
BGP
Thanks for reading and sharing your views.
DeleteVery good poem dealing with the vital issue of female foeticide. Your words have expressed everything very well.
ReplyDeleteThanks for your reaction. Isi tarah apne vichar vyakta karen.
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