- स्वप्ना सिन्हा
इसी लाइफ में . फिर मिलेंगे।
वे एक उच्च पद पर कार्यरत हैं। अपने दफ्तर में सहकर्मियों के बीच एक नेक और ईमानदार अफसर के रूप में जानें जाते हैं। सभी उनका आदर और सम्मान करते हैं। कई बार उनके पास गलत कम करने के प्रस्ताव आये। तरह - तरह के प्रलोभन भी दिये गये। पर ये सब उन्हें ईमानदारी के पथ से नहीं डिगा पाये।
उनकी तीन बेटियां हैं , जो सुशिक्षित एवं सुशील हैं। बड़ी बेटी की शादी की उम्र होते ही उन्होंने कई जगह बात चलायी। बात आगे बढ़ती , लड़की पसंद आती , परन्तु लेन - देन पर आकर बात अटक जाती। अन्य सामानों और एक कार के साथ - साथ एक मोटी रकम की भी मांग की जाती। दहेज़ के लिए इतना खर्च करना उनके लिए संभव नहीं था। लेन - देन के कारण शादी की बात आगे नहीं बढ़ पाती। हर जगह यही सिलसिला चलता। बिरादरी में तरह - तरह की बातें होने लगी।
एक दिन अपने एक मित्र से उन्होंने कहा ," बेटी की शादी तय नहीं कर पा रहा हूँ। तुम्हारी नज़रों में कोई लड़का हो तो बताना।"
मित्र ने कहा ," लड़केवालों का पता - ठिकाना दे दूंगा , पर वे पहले ही पूछेंगे कि खर्च कितना करोगे। "
उन्होंने कहा ," यही कोई चार - पांच लाख तक , इससे ज्यादा खर्च करने में असमर्थ हूँ।"
मित्र ने कहा ," आज के ज़माने में चार - पांच लाख में कोई लड़का मिलता है क्या ? तुम्हारी बिरादरी में तो " क्लर्क " लड़के का भी रेट दस - पंद्रह लाख से ज्यादा ही है। "
मित्र के जवाब से उन्हें कोई निराशा नहीं हुई। उन्होंने बिना किसी झिझक के जवाब दिया ," लड़का बेरोजगार भी हो तो कोई बात नहीं। बेटी की शादी तो हो जायेगी। कब तक उसे बिन ब्याहे रखूँगा - उसके पीछे दो और भी तो हैं। "
सुना है , ऐसे प्रस्ताव के बावजूद अब तक उनकी तीनों बेटियां कुंवारी हैं।