- स्वप्ना सिन्हा
इसी लाइफ में . फिर मिलेंगे।
नारी शक्ति की पूजा सभी पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ करते हैं - चाहे वह शक्तिस्वरूपा देवी दुर्गा हो या धन की देवी लक्ष्मी या फिर ज्ञान की देवी सरस्वती हो। सभी देवियां नारी शक्ति के ही कई रूप हैं। इनकी पूजा तो सभी करते हैं , पर उसी नारी शक्ति को कन्या भ्रूण हत्या के रूप में संसार में आने से पहले ही मार दिया जाता है। "वंश" आगे बढ़ाने के नाम पर बेटे की चाहत रखनेवालों के लिए तो बेटी एक अभिशाप ही है। बहुत सालों पहले भी बेटी के जन्मते ही मार देने का चलन था , पर अब विज्ञानं की तरक्की ने इसे और भी आसान बना दिया है। अल्ट्रासोनोग्राफी द्वारा गर्भ में ही लिंग परीक्षण कर बेटियों से जीने का अधिकार ही छीना जाने लगा है।
स्त्री - पुरुष अनुपात --- भारत में सन 2011 के जनगणना के अनुसार 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 940 है। जबकि 1000 बच्चों (0 - 6 वर्ष ) पर बच्चियों ( 0 - 6 वर्ष ) की संख्या सिर्फ 914 ही हैं। इस जनगणना के अनुसार केरला में 1000 पुरुषों पर स्त्रियों का अनुपात 1084 है , जो सबसे ज्यादा है। साथ ही हरियाणा में यह अनुपात 1000 पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या 877 है , जबकि दमन और दिउ में केवल 618 ही है। आंकड़े चौंकानेवाले हैं। स्त्री - पुरुष अनुपात का बिगड़ता संतुलन कन्या भ्रूण हत्या का ही परिणाम है। बच्चों के मुकाबले घटती बच्चियों की संख्या समाज के लिए एक चेतावनी है , जिसके दुष्परिणाम धीरे - धीरे भयंकर रूप धारण कर रहे हैं।
कन्या भ्रूण हत्या के दुष्परिणाम --- कन्या भ्रूण हत्या के कारण लड़कियों की घटती संख्या समाज में एक गंभीर समस्या बन चुकी है , जो कई राज्यों में खतरे की घंटी बजा रही है।
- लड़कियों की घटती संख्या के कारण ही अविवाहित लड़कों की संख्या बढ़ती जा रही है , जिसके अनेक खतरनाक परिणाम आज समाज भुगत रहा है।
- जितने अविवाहित लड़कों की संख्या बढती जा रही है , उतनी ही लड़कियों की खरीद - फरोख्त बढ़ता जा रहा है। नेपाल , बंगाल , असम , केरला एवं अन्य राज्यों से लड़कियां लायी जाती हैं। हरियाणा के साथ -साथ कम लड़कियोंवाले राज्यों में भी लड़कों की शादी के लिए लडकियां अन्य राज्यों से लायी जाती हैं
- लड़कियों के प्रति अपराधों में वृद्धि हो रही है और आज समाज में लड़कियां सरक्षित नहीं हैं।
कानून की अनदेखी --- कानूनन गर्भ में पल रहे भ्रूण की बेवजह परीक्षण दंडनीय है। पीएनडीटी ( प्री नेटल डायग्नोस्टिक टेक्नीक्स ) कानून की पूरी तरह से अनदेखी करते हुए गर्भ में भ्रूण परीक्षण का बाजार जोर - शोर से चल रहा है। मशरूम की तरह उग आये ऐसे अल्ट्रासोनोग्राफी क्लिनिक में लोग बेटी को नकारते हुए अपनी मनमर्जी से "बेटे की शॉपिंग " शान से कर रहे हैं। आज इस कानून को सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है।
मानसिकता में परिवर्तन है जरुरी --- स्त्री - पुरुष अनुपात के बिगड़ते संतुलन के दुष्परिणाम सामने हैं। फिर स्त्री बिना सृष्टि संभव नहीं। इसलिए घटती बेटियों की संख्या को रोकना जरुरी है, जो लोगों की मानसिकता में परिवर्तन किए बिना संभव नहीं है।
- बेटे से वंश चलता है या बेटा मुखाग्नि देता है - जैसे रुढ़िवादी सोच को बदलना होगा , तभी लोग केवल बेटे की चाहत में बेटी की हत्या करना बंद करेंगे।
- लोगों की एक संकीर्ण सोच यह भी होता है की बेटा बुढ़ापे का लाठी होता है। पर प्रायः देखने को मिलता है कि बुढ़ापे में बेटियां भी सहारा बनती हैं।
- बेटी को एक बोझ समझना संकीर्ण मानसिकता का ही परिचय है , जिस कारण उसके जन्म पर शोक मनाया जाता है। बेटियां भी आज बेटों के सामान ही पढ़ - लिख कर हर क्षेत्र में अपने साथ - साथ माता - पिता का भी नाम रौशन कर रही हैं।
- शिक्षा के प्रसार से लोगों के सोच में परिवर्तन बहुत हद तक संभव है। दूसरी तरफ तथाकथित पढ़े - लिखे सभ्य लोग भी कन्या भ्रूण हत्या करने के अपराधी पाये जाते हैं , जिनकी सोच को भी बदलना होगा।
- कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए महिलाओं को जागरूक करना जरुरी है। वे जागरूक होंगी तो बेटे और बेटी में फर्क नहीं करेंगी। तभी वे अपनी कन्या भ्रूण को मारने का विरोध कर पायेंगी।
- बेटी को जन्म से पहले ही मारने का एक बहुत बड़ा कारण है - दहेज़ की प्रथा। यदि दहेज़ प्रथा का लोग विरोध करें और इसको समाप्त किया जाये , तो लोग बेटी की जन्म की भी कामना करेंगे।
स्त्री को गृहलक्ष्मी की संज्ञा दी जाती है , पर उसे कन्याभ्रूण के रूप में ही कोख में मार देने जैसा जघन्य अपराध किया जाता है। माँ - बहन एक कन्या के रूप में ही इस संसार में आयी है। तो क्या माँ की ममता को नकार दें ? या बहनों के प्यार का त्यौहार रक्षाबंधन को बंद कर दें ? एक कन्याभ्रूण को इस संसार में आने का अधिकार केवल इसलिए नहीं मिलता कि वह बेटी के रूप में जन्म लेगी , पर वही भ्रूण बेटा होने पर उसे जन्म लेने का अधिकार मिल जाता है। इस धरती पर आनेवाली बेटियों से " जीने का अधिकार " तो न छीनें !
इसी लाइफ में . फिर मिलेंगे।
Yes, you are right. Women empowerment is equally important as it is for men. We can not compromise on these issues as we are witnessing women conquer the world in today's daily life.
ReplyDeleteAaj sabhi ki soch aisi hi honi chahiye. Thanks for your comment.
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