- स्वप्ना सिन्हा
इसी लाइफ में . फिर मिलेंगे।
आँखों में सपने, सामने खुला आसमान, सर उठाकर जीने की चाहत - यह है आज की नारी, जो हर क्षेत्र में पुरुषों की बराबरी में खड़ी है। आज नारी सशक्त हुई है, स्वावलंबी हुई है, जागरूक हुई है। विपरीत हालातों में भी बुलंद हौसलों से नयी इबारत लिख रही है। अभी तो उसके बढ़ते कदम को रास्ता ही मिल पाया है - फिर भी हर एक को मंजिल मिलना बाकि है। कुछ बाधाएं अब भी हैं राहों में। लेकिन उनके बुलंद हौसले कहते हैं कि हम होंगे कामयाब !
शिक्षा से बदली तक़दीर - अब नारी को समझ में आने लगा है कि शिक्षा के बिना स्वतंत्रता या अधिकार की बात करना बेकार है। पहले पुरुष जो निर्णय लेते थे उसे ही वह मानती थी , जिससे वह मानसिक एवं शारीरिक रूप से पुरुषों द्वारा शोषित होती थी। शिक्षित होने से उसे सही - गलत की पहचान होने लगी। स्त्री शिक्षा नारी सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। रिपोर्ट ऑफ कंसल्टेटिव कमेटी ऑफ पार्लियामेंट , 2006 के अनुसार 1950 में 100 पुरुषों के मुकाबले मात्र 14 महिलाएं उच्च शिक्षा प्राप्त करती थी। अब स्त्री - पुरुष उच्च शिक्षा का अनुपात 68 : 100 हो गया है। शहरी क्षत्रों में वर्ष 2009- 2010 में स्नातक या उच्च शिक्षा प्राप्त गृहणियां 57% थीं, तो ग्रामीण क्षत्रों में प्राथमिक - माध्यमिक स्कूल तक पढ़ी 31% गृहणियां थीं।
कुछ कर दिखाने का जज्बा - आज की स्त्री में इतनी हिम्मत और जोश है कि हर मुश्किल को पार कर उसने अपनी एक अलग पहचान बनायी है। डॉक्टर , इंजीनियर , वैज्ञानिक , पायलट , पत्रकारिता से लेकर पुलिस सेवा में जाना उनके लिए आम बात है।प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति पद से वे देश की सेवा कर चुकी हैं। आज देश की आर्थिक गतिविधियों में 31% से ज्यादा महिलाएं योगदान दे रही हैं। उद्योग जगत के कुल कार्यबल में महिलाओं की संख्या लगभग 40% है। खेल के मैदान में भी अपनी अलग पहचान छोड़ रही हैं , जिसका ताजा उदाहरण लंदन ओलंपिक में देखने को मिला।
अधिकारों के प्रति सजग - आधुनिक नारी अपने अधिकारों के प्रति बेहद सजग है। वह अपने ऊपर हो रहे अन्याय के विरूद्ध न केवल आवाज उठाती है बल्कि अपने हक के लिए लड़ना भी जानती है। वह परिवार के साथ - साथ समाज के प्रति भी अपने कर्तव्य निभाती है। समाज की समस्यायों को जानती है और उसे दूर करने में सहयोग देती है। शहरों की महिलाओं के साथ - साथ ग्रामीण महिलाएं भी जागरूक हो रही हैं। वे शिक्षित होने के साथ - साथ अपने अधिकारों एवं अस्तित्व के लिए आवाज उठाने लगी हैं।
फिर भी हालत ठीक नहीं - यद्दपि महिलाएं सशक्त हुई हैं, अनेक बाधाओं को पार करते हुए एक मुकाम हासिल किया है। फिर भी अनेक क्षेत्रों में उनकी स्थिति ठीक नहीं है।।सेहत के मामले में महिलाओं की स्थिति बहुत ही ख़राब है। लगभग 120 देशों की सूची में बच्चे पैदा होते समय मरनेवाली माँयें भारत में सबसे ज्यादा हैं । हर साल गर्भावस्था के दौरान 1.36 लाख महिलाएं मर जाती हैं।
जरुरत है सम्मान की - आज महिलाओं के हौसले का कोई जवाब नहीं ! उन्होंने मुश्किलों से लड़कर जीना सीख लिया है। विपरीत हालात के बीच वे नित नए मुकाम हासिल कर रही हैं। पर आज भी समाज में उन्हें उचित सम्मान नहीं मिल पाया है, जिसकी वह हक़दार हैं। तभी तो वे शोषण, अत्याचार, बलात्कार आदि की शिकार हो रही हैं।समाज में लोग जबतक स्त्री को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखेंगे, तबतक स्त्री पर ऐसे अत्याचार होते रहेंगे। अधिकार, सम्मान और सुरक्षा मिले तो एक स्त्री क्या नहीं कर सकती !
समय के साथ हालत बदल रहे हैं, इसमें कोई शक नहीं है। लेकिन अभी भी ये बदलाव मिसालें भर ही हैं। कानून, संविधान और समाज सब कुछ है , पर सच यह है कि अपनी जगह बनाने के लिए स्त्रियों की जंग आज भी जारी है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि देश के संसद में केवल 10% महिला सदस्य हैं, जबकि अमेरिका में यह आंकड़ा 17% है। अर्थात तस्वीर काफी हद तक बदली है, पर सफ़र तय करना अभी भी बाकी है। आशा है , आनेवाले दिनों में हर नारी मजबूत पंख लिए खुले आसमान में स्वयं उड़कर खुद की एक अलग पहचान बनाएगी। उनके जोश और जज्बे को सलाम !!
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