- स्वप्ना सिन्हा
वह
एक स्त्री ,
जिसकी नहीं अपनी पहचान ,
पहचानी जाती
दूसरों के नामों से।
रिश्तों के डोर से बंधी
वह है
एक माँ , बहन , पत्नी , बेटी !
खोज रही वह
अपनी एक पहचान ,
झूल रही वह
अपने होने - न होने के बीच।
लड़ रही एक लड़ाई
अपने अस्तित्व के लिए ,
बता रही दुनिया को
हाँ,
वह है !
चलती रही
दूसरों के पद्चिन्ह पर ,
आज
कोशिश में है गढ़ने को
अपने ही पद्चिन्ह !!!
इसी लाइफ में . फिर मिलेंगे।
This is what women are struggling with now a days. They need to make a choice and stick by it. As I firmly believe that one's life is decided by his/her own choices. So apna rasta khud banaye...aur age badhe.
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