लघु कथा -
प्रैक्टिकल समधी
- स्वप्ना सिन्हा
इसी लाइफ में . फिर मिलेंगे।
प्रैक्टिकल समधी
- स्वप्ना सिन्हा
उनके बेटे की शादी की बात चल रही थी। कई अच्छे घरों से रिश्ते आ रहे थे। एक ऐसे सज्जन के यहाँ से भी रिश्ता आया था, जो बैंक मैनेजर के पद पर कार्यरत थे। उन्होंने सोचा कि बैंक मैनेजर के यहाँ रिश्ता करने से बहू के साथ - साथ लक्ष्मी स्वतः आ जायेगी। पता चला कि लड़की सुन्दर, सुशील और पढ़ी - लिखी है। लड़की का फोटो मांगा गया। वाकई, लड़की बहुत ही सुन्दर थी। उन्हें ऐसी ही लड़की की तलाश थी। शादी की बात आगे बढ़ायी गयी, पर उनकी पत्नी ने कहा कि केवल लड़की सुन्दर होने से ही नहीं होगा। उसमें संस्कार के साथ परिवार का 'स्टैंडर्ड ' भी होना चाहिये। जरा घर - परिवार के बारे में भी मालूम करना पड़ेगा।पत्नी की बात उन्हें सही लगी।
इसी बीच उनके एक मित्र मिलने के लिए आये। बातों ही बातों में उन्होंने इस रिश्ते की चर्चा की। मैनेजर साहब का नाम सुनकर उनके मित्र ने कहा, " वे तो बहुत ही सज्जन और विनम्र व्यक्ति हैं, साथ ही ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ भी हैं। मुझे एक लोन लेना है, पर वे तो नियम - कानून में अटके हुए हैं। यदि आपके यहाँ रिश्ता हो जाता है तो मेरा काम शायद बन जायेगा। "
उनके मित्र चले गये, पर अब उनका माथा ठनका। उन्होंने अपने एक परिचित से, जो उस बैंक में कार्यरत थे, पूछताछ की। पता चला कि सचमुच मैनेजर साहब ईमानदार , कर्त्तव्यनिष्ठ और आदर्शवादी हैं। शर्माजी दु:खी हो गये। सब कुछ तो ठीकठाक ही था , पर मैनेजर साहब की ईमानदारी आदर्शवाद ने शर्माजी को आहात कर दिया।
अब शर्माजी बेटे की शादी के लिए अन्यत्र बात कर रहे हैं। सुना है , होनेवाले समधी बहुत ही प्रैक्टिकल और समय के साथ चलने वाले अधिकारी हैं।
इसी लाइफ में . फिर मिलेंगे।
Wah! Short, funny, to the point, a social-mirror. A story reflecting real concerns of a modern family.
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