- स्वप्ना सिन्हा
वे एक समाज सेवक हैं। उनके लिए समाज सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं, कोई कर्म नहीं। पूरे शहर में वे एक सम्मानित व्यक्ति हैं। कभी नारी - उत्थान के लिए कार्य करते हैं तो कभी बाल - श्रमिकों के लिए। आजकल वे एक "बाल - श्रमिक उन्मूलन संस्थान " के अध्यक्ष है। कभी वे सभा - समिति में लोगों को संबोधित करते हैं , तो कभी लोगों से बातचीत कर उन्हें जागरूक करते हैं ताकि बच्चों का शोषण न हो , उन्हें उचित शिक्षा मिल सके और वे एक आदर्श नागरिक बन सकें।
आज वे अपने घर पर आठ - दस कार्जकर्ताओं के साथ 'मीटिंग ' कर रहें हैं। उन्होंनें कार्जकर्ताओं को समझाते हुए जोश से कहा , " भाइयों बच्चे तो भगवान के रूप होते हैं , पर लोग उनसे मजदूरी करवा कर बहुत बड़ा पाप कर रहे हैं। ऐसे लोगों को तो भगवान भी माफ नहीं करेंगे। उन्हें कालीन उद्योग ,पटाखा उद्योग या अगरबत्ती उद्योग में काम करवा कर उनका पूरी तरह शोषण किया जाता है। उन्हें ऐसे उद्योगों से छुड़ाना है। इन बाल - श्रमिकों के पुनर्वास की भी व्यवस्था करनी है , ताकि कोई फिर से इनका शोषण न कर सकें। "
कार्जकर्ताओं ने कहा , " तब तो बहुत अच्छा होगा , लेकिन हमें क्या करना होगा ? "
उन्होंने कहा , " सबसे पहले तो बाल - मजदूरों का पता चलते ही उन्हें छुड़ाना होगा। उनके मालिक उन्हें न छोड़ें , तो पुलिस की मदद लीजिए। उनके माता - पिता को भी समझाना होगा , ताकि वे अपने बच्चों से मजदूरी न करवायें। इनके पढ़ने - लिखने की व्यवस्था करनी होगी। सरकार इसके लिए मदद कर रही है। इस दिशा में हर नागरिक को सोचना होगा। उन्हें जागरूक बनाना होगा , जरुरत पड़ी तो हम इसके लिए आंदोलन करेंगे। "
सभी कार्यकर्ता वाह - वाह कर उठे। वे सभी अध्यक्ष महोदय की तारीफ करने लगे। अब अध्यक्ष महोदय अंदर की तरफ मुखातिब होकर बोले , " अरे , कोई है ? चाय - पानी तो भिजवाओ।
एक दस - बारह साल का लड़का चाय - नाश्ता लेकर आया। वह मैले - कुचैले कपड़े पहने हुए एक नौकर के तरह लग रहा था। टेबुल पर चाय - नाश्ते का ट्रे रखते समय ट्रे का संतुलन बिगड़ गया। एक चाय का कप लुढ़क गया और थोड़ी सी चाय अध्यक्ष महोदय के सफेद कुर्ते पर गिर पड़ी । अध्यक्ष महोदय ने आव देखा न ताव , उस बच्चे को एक लात मारी। बच्चा गिर पड़ा। वे चीखे , "साले , काम करना नहीं आता। दिनभर मुफ्त की रोटी तोड़ते रहता है। सोचा कि गरीब का बच्चा है। मेरे घर रहेगा तो खा - पी कर कुछ काम सीख लेगा , पर नहीं - इनका कभी भला नहीं करना चाहिए। "
वह बच्चा सर झुकाए गिरे हुए कप को उठा रहा था। उसकी आँखों से आंसू की दो बूंदें गिर पड़ीं। बाकि सारे लोग ठहाकों के बीच चाय - नाश्ते का लुत्फ उठाने लगे।
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