- स्वप्ना सिन्हा
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।।
इसी लाइफ में . फिर मिलेंगे।
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।।
शक्तिस्वरूपा देवी दुर्गा की पूजा और आराधना महज एक पूजा नहीं बल्कि शक्ति की साधना है। नवरात्र के नौ दिनों तक तन- मन की शुद्धिकरण के साथ यह साधना की जाती है , जो यह संदेश देती है कि तन के साथ - साथ मन की शुद्धता कितनी महत्वपूर्ण है। पूजा के दसवें दिन विजया दशमी होती है , जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
शक्तिरूपेण --- देवी दुर्गा महिषासुर का वध कर बुराई का विनाश कर अच्छाई की स्थापना करती हैं , इसलिए वह शक्तिस्वरूपा कहलाती हैं। इसी शक्ति की साधना करके ही हम अपने सारे लक्ष्य पा लेते हैं। शक्ति यानी मन की शक्ति - जो हमारे अंदर है और इसी विश्वास को पाना ही शक्ति की साधना है। नवरात्र के व्रत एवं उपासना से हम अपनी इन्द्रियों को भी वश में करते हैं।तभी तो देवी की उपासना करने से बेहतर विकल्प और कुछ भी नहीं।
मातृरूपेण --- माँ भगवती कल्याणकारी माता हैं, जो सारे संसार का कल्याण करती हैं। देवी के मातृस्वरूप के प्रतीक के रूप में एक माँ का भी स्थान होता है, जो ममतामयी, करुणामयी और त्यागमयी होती है। आज मातृशक्ति की महत्ता को हम नकार नहीं सकते। समय के बदलते दौर में भी नारी के महत्व सभी समझ रहे हैं और उसे उच्च स्थान और सम्मान प्राप्त हो रहा है।
कन्या - पूजन की सार्थकता --- नवरात्र में "कन्या - पूजन" की भी परंपरा है, जिसके तहत एक छोटी कन्या को देवी स्वरूपा मानते हुए उसकी विधिवत पूजा की जाती है और कन्या को देवी का स्थान दिया जाता है। इसी "कन्या - पूजन" के अनुष्ठान से लड़की के महत्व का भी पता चलता है। हमारी संस्कृति और परंपराओं में लड़की को देवी स्वरूपा माना गया है। पर हमारे समाज में कन्या - भ्रूण हत्या और लड़कियों की दयनीय स्थिति इस परंपरा और अनुष्ठान पर एक प्रश्नचिन्ह लगा देता है। हमारे देश में लड़कों के वनिस्पत लड़कियों का घटता अनुपात , लड़कियों पर हो रहे हिंसा और अत्याचार इस बात के संकेत हैं कि आज लड़कियों की वास्तविक स्तिथि क्या है। "कन्या - पूजन " सही मायने में तभी सार्थक होगा जब कन्याओं को सम्मान से जीने का अधिकार मिलेगा।
असत्य पर हो सत्य की विजय --- विजया दशमी असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है यानी यह विजय पर्व है। माँ दुर्गा असुरों का नाश कर बुराई का नाश करती है और अच्छाई की जीत होती है। तभी तो दशमी के दिन बुराई के प्रतीक रावण के पुतले का दहन होता है। आज मनुष्य भौतिकवादी सुख़ - सुविधाओं में इस कदर आसक्त है कि वह इसे पाने के लिए हर प्रकार की बुराईयों और अपराधों में लिप्त होता जा रहा है। जरुरत इस बात की है कि मन में समाये राक्षस रूपी बुराइयों - लोभ- हिंसा - द्वेष - कटुता आदि का नाश कर अच्छाई का रास्ता चुनें। मन के इन असत्य विचारों पर विजय पाकर मन के अंधकार को दूर करें , तभी हम सत्य पथ पर चलते हुए
सारे संसार को सत्य के प्रकाश से आलोकित कर सकेंगे।
Bohot hi sahi prakar se wayakt kiya h aapne apne wicharo ko. Bohot hi kam log is najariye se dekhte h dewi arradhna ko.
ReplyDeleteThanks for visiting my blog . Isi tarah padhte rahen aur apne vichar vyakta karen .
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